Middle Corridor: भारत के एक अहम कदम से पड़ोसी मुल्क चीन की भी नींद उड़ने वाली है। भारत चीन की बेस्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प के रूप में ट्रांस-कैस्पियन इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट रूट (TITR) यानी मिडिल कॉरिडोर को अपनाने की तैयारी में है। भारत जिस कॉरिडोर पर काम कर रहा है, उससे चीन पर तो ही निर्भरता तो कम होगी, साथ ही भारत को मध्य एशिया और यूरोप के साथ व्यापार के नए अवसर प्रदान कर सकता है।
क्या है BRI
बता दें कि चीन का बेस्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) वैसे तो एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसका एक अहम हिस्सा चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर भारत के लिए विवाद के रूप में है। बता दें कि यह कॉरिडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपनी जमीन मानता है। भारत ने पहले भी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का विरोध किया है, क्योंकि इसे अपनी संप्रभुता के खिलाफ मानता है।
क्या है मिडिल कॉरिडोर
इस वजह से भारत एक बेहतर विकल्प तलाश रहा है और कजाकिस्तान का मिडिल कॉरिडोर उसी दिशा में एक अहम कदम है। मिडिल कॉरिडोर एक ऐसा व्यापारिक रास्ता है जो चीन मध्य एशिया, कैस्पियन सागर, कॉकसस और यूरोप को जोड़ता है। यह रूट 4,250 किलोमीटर रेल और 500 किलोमीटर समुद्री है। बता दें कि इसकी शुरुआत 2014 में तब हुई थी जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया और उसके बाद कई देशों ने वैकल्पिक रास्ते तलाशे। फिर 2017 में बाकू-त्बिलिसी-कार्स रेलवे शुरू हुआ, जिसने इस रूट को और ताकत दी। इसके जरिए चीन से तुर्की तक 12 दिन में और यूरोप के प्राग तक 18 दिन में पहुंच सकता है।
2024 में ही इस रूट से माल ढुलाई में 62 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2025 तक 52 लाख टन माल और 70,000 TEU कंटेनर भेजने का लक्ष्य है। कजाकिस्तान इस कॉरिडोर को मजबूत करने के लिए सड़क, रेल और हवाई अड्डों का विस्तार कर रहा है, जिसमें अकताऊ में 2.4 लाख TEU क्षमता वाला कंटेनर हब भी शामिल है। बता दें कि भारत के लिए यह मिडिल कॉरिडोर इसलिए भी अहम है क्योंकि लाल सागर में हूती हमलों ने स्वेज नहर मार्ग को जोखिम में डाल दिया है।