न्यूज़ डेस्क। मुंबई और मैंगलोर के बीच स्थित कोंकण रेलवे (Konkan Railway ) अब भारतीय रेलवे (Indian Railways) में मर्ज होने जा रहा है। बता दें कि यह एक महत्वपूर्ण रेलवे लाइन है जो महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक राज्य को जोड़ती है, यह 741 किलोमीटर लंबी है और इसकी स्थापना 1988 को हुई थी। कोंकण रेलवे को भारतीय रेलवे में विलय होने की सहमति महाराष्ट्र गोवा, कर्नाटक और केरल ने दे दी है। बता दें कि केआरसीएल में केंद्र सरकार की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि महाराष्ट्र (22%), कर्नाटक (15%), गोवा (6%) और केरल (6%) की हिस्सेदारी है।कोंकण रेलवे के तहत चलने वाली ट्रेनों में सफर के दौरान प्रकृति को करीब से निहराने का मौका मिलता है, लेकिन इस खास रेलवे को अब भारतीय रेलवे में मर्ज करने की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी है। यहां हम इसके तीन कारण बता रहे हैं।
विलय करने का क्यों लिया गया फैसला
पहला कारण यह है कि कोंकण रेलवे को केंद्र सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है, जिससे कई काम रुक हुए हैं, जिनमें ट्रैक दोहरीकरण से लेकर स्टेशन सुधार तक के काम है। कुछ आंकड़ों की बात करें तो 2021-22 में इसका लाभ 55.86 करोड़ रुपए था, जो बड़े प्रोजेक्टस के कम है, दूसरी ओर भारतीय रेलवे को 2003 में 2.4 लाख करोड़ रुपए का बजट मिला था।
दूसरा करण यह है कि केआरसीएल ने ट्रेन को सुरक्षित चलाने के लिए आटोमैटिक कंट्रोल डिवाइस लगाने के लिए कहा था, लेकिन यह वादा अब तक अधूरा रहा है।
कोंकण रेलवे ने स्काई ट्रेन चलाने के बड़े -बड़े वादे किए थे, लेकिन यह प्रोजक्ट भी पूरा नहीं हो सकी। कहीं ना कहीं ये ही बड़ी वजह रही हैं कि अब कोंकण रेलवे को भारतीय रेलवे में मर्ज कराने का फैसला लिया गया है।
मर्ज होने से क्या होगा फायदा ?
माना जा रहा है कि भारतीय रेलवे में कोंकण रेलवे के मर्ज होने से कई फायदे हो सकते हैं।ट्रेनों आक्यूपेंसी रेट बेहतर होगी और रेल ऑपरेशंस में समन्वय बढ़ेगा। साथ ही कोंकण क्षेत्र में आर्थिक विकास होगा। ट्रैक का दोहरीकरण का काम होगा और नई ट्रेनों शुरू भी हो सकेंगी। वैसे महाराष्ट्र सरकार ने मार्च 2024 में विलय की सहमति तो दी थी, लेकिन साथ ही शर्त भी रखी कि “कोंकण रेलवे” नाम बनाया रखा जाए और महाराष्ट्र सरकार की हिस्सेदारी 396.54 करोड़ रुपये वापस की जाए। इसके लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पत्र भी लिखा था।